सत्येन्द्र नाथ गोपाल इन्होंने गवर्नमेंट कालेज आफ आर्टस एंड क्राफ्ट्स , कलकत्ता से डिप्लोमा प्राप्त किया। तत्पश्चात् स्लेड स्कूल आफ आर्ट और गोल्डस्मिथ कालेज आफ आर्ट, लंदन में कला का प्रशिक्षण प्राप्त करते रहे । यद्यपि ये व्यावसायिक कलाकार हैं, तथापि कला केदारनाथ के मार्ग में यात्री विश्रामस्थल की वारीकियों को इन्होंने हृदयंगम किया है, सीधी सादी फड़कती हुई रेखानों में सीधेसादे रंगों द्वारा चित्रों में सजीवता लाने की चेष्टा की है। उनके चित्रों में कोमलता उतनी नहीं है जितना कि सुस्पष्ट उभार । चित्रों की अंतरात्मा बोलती हई भी प्रतीत होती है और सभी प्राकृतियाँ सक्रिय और मनमोहक दीख पड़ती हैं।
दिल्ली पालीटेकनीक में कुछ दिन लेक्चरार के पद पर कार्य करने के पश्चात् कलकत्ता के गवर्नमेंट कालेज आफ आर्टस एंड क्राफ्ट्स के फाइन आर्ट और इंडियन पेंटिंग डिपार्टमेंट के अध्यक्ष पद पर इनकी नियुक्ति हुई और तब से वहीं कार्य कर रहे हैं। 1956 में ललित कला अकादमी की कला शिक्षा संगोष्ठी के संयोजित सदस्य के रूप में ये चुने गए। नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में एक विशाल भित्तिचित्र "शक्ति का स्थानान्तरण" बनाने के लिए इन्हें आमंत्रित किया गया। इन्होंने समूचे भारत का दौरा किया । यूरोप और वृहतर ब्रिटिश देशों में भ्रमण किया । आर्ट एग्जीविशन तिम्बत के मार्ग पर चाय की दुकान न्यूरो से प्रेरित यूनाइटेड किंगडम में एक चलती-फिरती कला प्रदर्शनी की व्यवस्था की । इम्पीरियल इंस्टीटयूट गैलरी, लंदन में इन्होंने अपने चित्रों की प्रदर्शनी की, दिल्ली और कलकत्ता में भी इनके चित्रों की प्रशिनियाँ आयोजित की गई। भारत तथा विदेशों के कतिपय महत्त्वपूर्ण कला-संग्रहालयों में इनके अनेक चित्र सुरक्षित हैं ।