धीरेन्द्र कुमार देव वर्मन{Dhirendra Kumar Dev Varman}

कला-क्षितिज पर अकस्मात् एक नया सितारा चमका और वह थे धीरेन्द्र कुमार देव वर्मन । उन्होंने कला की उभरती हुई शक्तियों को पहचाना और प्राचार्य वसु के शैली-शिल्प और भाव-सम्पदा को अपनी कला में आत्मसात् किया । असित कुमार हाल्दार से भी उन्हें अपने कलारूपों को सुस्थिर करने की प्रेरणा मिली थी। बड़े ही संयत, सुकोमल और संयोजक रंगों में क्रमशः उनके चित्र उभरे । कल्पना की विचित्र संस्थिति का रूपांकन भी बड़े ही मार्मिक ढंग से हुआ । "बुद्ध और सुजाता" में निर्माण-संतुलन और सीधी-सादी आस्था व्यक्त होती है, पर "राधा" में भावपूर्ण सूक्ष्म व्यजना और रूप-रंग का अधिक आकर्षण और चारु वातावरण प्रस्तुत किया गया है । उनके नैसर्गिक भावावेग ने एक विशेष प्रकार की रंगीनी एवं शृंगारिकता जगाई, यद्यपि जापानी कला टेकनीक की सुहानी छाप भी इनकी चित्रकृतियों में दीख पड़ती है। सर विलियम रोथेस्टाइन के तत्त्वावधान में एल्डविच, लंदन में इंडियान हाउस के एक कक्ष में भित्ति-चित्र सज्जा का कार्य इन्होंने सम्पन्न किया । कलकत्ता यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी महायती सदन और गांधी स्मारक संग्रहालय मदुराई में इन्होंने भित्ति-चित्र निर्मित किये। रवीन्द्र नाथ ठाकुर के साथ इन्होंने यूरोप और सुदूर पूर्वी देशों-जैसे जावा, बाली द्वीप का बड़े पैमाने पर भ्रमण किया । सन् 1954 में टोकियो की आर्ट एंड क्राफ्ट्स में सामान्य शिक्षण प्रणाली पर हुए सेमिनार में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भेजे गए । 1955 में चीन सरकार द्वारा इन्हें आमंत्रित किया गया। तुनहांग में इन्होंने सहस्त्र बौद्ध गुफाओं के भित्तिचित्रों की अनुकृतियाँ प्रस्तुत की। कलकत्ता, बम्बई और भारत के अनेक प्रमुख नगरों में इनके चित्रों की प्रदर्षिनियाँ आयोजित हुई, साथ ही इन्होंने अनेक भारतव्यापी और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शिनियों में सहयोग दिया। इनकी रंग नियोजन पद्धति बड़ी ही संयत और गम्भीरता लिये है। किन्तु शनैः शनैः इनकी रूप-साधना निराधार सन्धान की शून्यता में बिखर सी गई । "कला में देवालय" जैसी चित्रकृति बड़ी ही नीरस, तत्त्वहीन और ज्यामितिक पद्धति पर निर्मित हुई । उसमें समकोण, चतुष्कोण आकार के द्वार से पूजारिन औरतों को निकलता दर्शाया गया है जिसमें वातावरण एकदम प्राणहीन सा लगता है। इनकी रचनात्मक क्रियाशीलता ज्यों-ज्यों शिथिल पड़ती गई, आच्छादित प्रच्छन्न प्रकृति में संयुक्त हो इनकी कला के विकास में भी गत्यवरोध उत्पन्न होता गया।

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