कलकत्ता ग्रुप {KOLKATA GROUP}

कलकत्ता ग्रुप
बंगाल स्कूल द्वारा प्रतिपादित कलादर्शों और परवर्ती शांतिनिकेतन शैली का एक लम्बे अर्से तक यथोचित निर्वाह होता रहा, किन्तु कालान्तर में उसके कुछ समर्थकों के दुराग्रह ने तथाकथित सृजन-प्रक्रिया को इतना रूढ़ और अनुल्लंघनीय बना दिया कि उसमें क्रमशः उस वैविध्य का अभाव होता गया जो पूर्ववर्ती कलाचार्यों को विशेषता थी, साथ ही जिन्होंने उसे अपने देश की लोक संस्कृति के तत्त्वों से संश्लिष्ट किया था। ज्यों-ज्यों वे निर्जीव शिल्पाभास के छोर पर पहुंचते गए, उधर स्वभावतः ही अत्याधुनिक कला-प्रवृत्तियाँ इस रूढ़ मनोवृत्ति से परे पाश्चात्य परम्पराओं के प्रश्रय में एक सर्वथा नये ढंग से विकसित होती रहीं।
रूढ़ि दिरोधी और युगीन विचारों को प्रतिक्रिया ने कला को आधारभूत कल्पना में एक अभिनव क्रान्तिकारी परिवर्तन उपस्थित कर दिया था। पहले के समचे प्रतिबन्ध प्रमान्य सिद्ध हए और कल्पना की उन्मक्ति का तर्क ही सर्वोपरि माना गया । फलतः ‘कलकत्ता ग्रुप के कलाकारों ने नया रूप-विधान, नये रागात्मक सम्बन्धों के कारण नवीन परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में निजी कलारूपों को स्वच्छन्द रूप से निरूपित किया । एक तो बँधी बँधाई परिपाटी के विरुद्ध नये कलादों का आग्रह था, दूसरे कला की सृजनात्मक दिशा में अवरोध उत्पन्न हो गया था, इसके अतिरिक्त नव्य विचारधारा के लोगों ने बुजुर्ग पीढ़ी के कलाकारों के प्राचार्यत्व का दबाव भी महसूस किया था। कदाचित् इसी दबाव के फलस्वरूप नये कलाकार कला के क्षेत्र में एक नई चुनौती के साथ प्रागे पाए । इन उत्साही कलाकारों ने कला-स्वातन्त्र्य और कल्पना के विविध बोध ग्रहण किये और यों मौजूदा जीवन के कितने ही अनुभव अपनी बहुरूपता में अत्यधिक सफलता पूर्वक आँके गए।
इस श्कलाकार ग्रुप द्वारा मौलिकता की समस्या जो उठाई गई वह वस्तुतः आधुनिक कलाबोध की एक बहुत बड़ी समस्या थी अर्थात् किसी कला-सर्जना की श्रेष्ठता का निर्णय किन मानदण्डों से किया जाय? सूझ की मौलिकता अथवा अजित शिल्प-कौशल के आधार पर ? नये कलाकारों के तर्क अपेक्षाकृत पुष्ट थे । कला के समूचे प्रादों, प्रचलित मान्यताओं और परम्पराओं को चकनाचूर कर वे सर्वथा नये तौर-तरीकों से मुंह तोड़ जबाब देना चाहते थे, प्रतएव उन्होंने अपने सजन द्वारा चैंकाने वाले प्रआयाम उपस्थित किये । ये उत्साही कलाकार इस बात से भली भांति परिचित थे कि उनकी नई कला की कसौटियों में अभी उतनी सामर्थ्य न थी जो जन-मन को बदलने और पुरातन रूढ़ियों को प्रामल उखाड़ फेंकने में संभव हो सकती, बल्कि अन्तर को छूने वाले तत्त्वों के समावेश द्वारा वे जनता के मन पर शासन करना चाहते थे जिसमें वे कुछ हद तक सफल हुए। इन कलाकारों ने अपने ढंग से यह सिद्ध किया कि उनकी भावनाएं कुंठित नहीं हैं और न ही उनकी रचनात्मक शक्तियां घिसी-पिटी प्रणालियों में पिसकर निःशेष रह गई हैं, अपितु वे खुली प्रांख और खुले दिल से दूसरे देशों से बहुत कुछ ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं जो समान रूप से आनन्ददायक, रोमांचकारी और स्फतिप्रद है। अतएव स्वतन्त्र मान्यताओं और निजी कलाभिरुचियों को विकसित कर वे रोमांचक विधानों के साथ प्रागे बढ़े।

Post a Comment

Previous Post Next Post