बाघ की गुफाएँ (Bagh Caves)

बाघ की गुफाएँ  
(4 थी सदी ई. से 5 वी सदी ई.)

भौगोलिक स्थिति व नामकरण

बाघ की गुफाएँ मध्यप्रदेष में स्थित हैं। मूह रेल्वे स्टेषन से धार मार्ग के द्वारा बाघ कस्बे तक पहुँचा जाता है। बाघ की गुफाआंे का नामकरण भी अजन्ता की ही तरह पास के ‘‘बाघ’’ नामक गाँव के कारण पड़ा। प्राचीन ग्वालियर राज्य की विंध्याचल पर्वत श्रृंखला मंे नर्मदा की एक सहायक नदी बागमती से 5 किमी. दूर बाघ नामक गाॅव के पास ये गुफाएँ स्थित है।
स्थानीय लोग इन गुफाओं को पंच पांडू की गुफाएँ भी कहते हैं। ये गुफाएँ भी अजंता की तरह सैकड़ों वर्षों तक अज्ञात रही। स्थानीय लोग यह अवष्य जानते थे कि यहाॅ पर कुछ गुफाएँ हैं, मगर चित्रित गुफाओं का उन्हें भी अन्दाज नहीं था।


                                                      चित्र 22 - बाघ गुफा का प्रवेशद्वार।

खोज
1818 में लेफ्टीनेन्ट डगरलफिल्ड ने सर्वप्रथम बाघ की गुफाआंे का विवरण ‘‘साहित्यिक विनिमय संघ’’ की एक पत्रिका के द्वितीय अंक में प्रकाषित करवाया था। बाद में एरिक्सन और डाॅ. इम्पे ने बाघ के गुफा चित्रों पर विस्तृत जानकारियाँ प्रकाषित की। सन् 1929 में कर्नल सी.ई.ल्युवर्ड ने रायल एषियाटिक सोसायटी की पत्रिका मंे एक गवेषणात्मक लेख लिखा। सन् 1910 में असीत कुमार हलदार और 1925 में मुकल चन्द्र डे ने भी बाघ के चित्रों पर अपने-अपने विस्तृत लेख प्रकाषित किए।

उद्देष्य

बाघ की गुफाएँ भी अजन्ता चित्र श्रंृखला की एक कड़ी है। ये गुफाएँ महायान बौद्ध सम्प्रदाय से संबंधित हंै। इन्हंे बौद्ध भिक्षुओं के आवास और बुद्ध उपदेषों के प्रवचन-श्रवण हेतु बनाया गया था।
 
रचना काल
बाघ की गुफा की चट्टानों का पत्थर बडा मुलायम है, जहाँ ना तो मूर्तियाॅ बन पायी और ना ही षिलालेख आदि खुद पाये हैं। इस प्रकार इनके रचना काल के लिए स्पष्ट प्रमाण भी नहीं मिलते हैं। फिर भी यह निर्विवाद स्वीकारा गया है कि बाघ के चित्र गुप्तकाल के श्रेष्ठतम उदाहरणांे में से हैं। यहाॅ चित्रित प्रमाण पूर्णतः नष्ट हो चुके है। इन धुँधले पडे़ रंगों को गीला करके देख पाना भी असम्भव है। फिर भी एक जुलूस के चित्र पर ‘क’ अक्षर हिरौन्जी रंग मंे लिखा है। प्राचीन लिपिषास्त्री जिसका अर्थ छठी-सातवीं शताब्दी से लेते है।ं कला इतिहासकार विन्संेट स्मिथ बाघ की गुफा चित्रों का समय 626-628 ई. मानते हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा इन गुफाओं की सफाई और जीर्णाेद्वार करते समय दूसरी गुफा में ‘महाराज सुबन्धु’ का एक ताम्रपत्र मिला, जिससे इन गुफाओं के निर्माणकाल का ठीक समय निष्चित हो जाता है। ताम्रपत्र की चैथी पंिक्त के अनुसार यह गुफादान ‘‘कलयन’’ (बाघ) नामक विहार को दिया गया है। इस प्रकार ये गुफाएँ  पुर्व मंे कलयन (बोद्ध धर्म द्वारा प्रदत्त नाम) से भी पुकारी जाती हांेगी। इतिहासकार महाराज सुबन्धु का समय 416-466 ई0 के मध्य मानते हैं। अतः सभी प्रकार के अध्ययन से यह निर्णय निकलता है कि ये गुफाएँ महाराज सुबन्धु के समय में तैयार हो गई होगी। जिनका समय चैथी-पाँचवी शताब्दी माना जा सकता है।

बाघ की गुफाओं की संख्या और इनके नाम

बाघ में कुल नौ गुफाएँ थीं, जो सभी विहारगृह थे। इन गुफाआंे के कई नाम प्रचलित थे। पहली गुफा का नाम ‘‘गृह गुफा’’, दूसरी गुफा गुसाई अथवा ‘‘पंच पाण्डू’’ की गुफा कहलाती है। तीसरी गुफा को ‘‘हाथीखाना’’, चैथी गुफा को ‘‘रंग महल’’, पाॅचवी को ‘‘पाठषाला’’ कहा जाता है। छठी, सातवीं, आठवीं व नवी ं गुफाएँ आवागमन की दृष्टि से अवरुद्ध सी हैं, फलतः इनके नाम भी प्रचलन मंे नहीं रहे हंै। 

बाघ के चित्र

बाघ मंे गुफा संख्या चार व पंाॅच के कुछ चित्रों को छोड़ कर अन्य सभी (गुफा संख्याँ 1, 2, 3, 6, 7, 8 व 9 मंे) गुफाओं के चित्र पूर्णरुप से नष्ट हो चुके हैं। चैथी और पाँचवी गुफा से मिलता हुआ एक 200 फीट का दालान (बरामदा) है, जिसकी छत बीस स्तम्भांे पर आधारित थी, जिसके गिरने से 15 फीट का एक चित्रित पैनल नष्ट हो गया है। चैथी गुफा के बाहर की दीवार तथा पांचवी गुफा के बाहर की दिवार के आरंभ होने के स्थान पर के चित्र सबसे अच्छी स्थिति मंे थे, जो वर्तमान में नहीं के बराबर शेष है। 

गुफा संख्या 1 व 2

यह एक विहार गुफा है, वर्तमान में इस गुफा में कोई मूिर्त और चित्र के प्रमाण शेष नहीं हैं आरै गुसाई अथवा पाण्डू के नाम की दुसरी गुफा की दीवारों पर मानवाकृतियों के संयोजन तथा छत पर बेल-बूटांे के आलेखनों के चिन्ह यहाँॅ-वहाँ बिखरे हुए दिखाई देते थ,े जो अब पूर्णतः नष्ट हो चुके हंै।

गुफा संख्या 3

इस गुफा को ‘‘हाथी खाना’’ कहते हैं, इसका कन्ेद्रीय कक्ष बुद्ध और बोधिसत्वांे के चित्रों से भरा हुआ था, किन्तु अब केव ल बुद्ध का आभा मण्डल ही शष्ेा रह गया है। एक स्थान पर खड़ी बुद्ध आकृतियाॅं अण्डाकार आभा मंडल के मध्य चित्रित थीं। एक अन्य आकृति के पैर, कमल, तथा हाथों मंे दीप लिए एक उपासक की आकृति अंकित है। द्वार के निकट भूमि को स्पर्ष करती स्त्री की स्थिति भी अस्पष्ट सी है। 

गुफा संख्या 4

यह गुफा चैत्याकार में है, जिसे रंग महल भी कहते हैं। इसमें बनी पद्मासन मुद्रा में बुद्व मूिर्तयों के कारण यह चैत्य का रूप प्रकट करती है। किसी समय यहाॅ बुद्ध के सुसज्जित चित्र भी रहे होगंे। इसी गुफा के बाहरी बरामदें में 45 फीट लम्बें और 6 फीट चैडंे़ एक स्थान पर आकर्षक चित्र मिलते हैं। यह पैनल गुफा संख्या पाँच तक फैला हुआ है। जिसमें आठ दृष्य चित्रित हैं। जो स्थान-स्थान पर बने केले के वृ़क्षों व द्वारों से सभी दृष्यों को अलग-अलग करते हंै।
 
पहला दृष्य

अधिकांष चित्र इस गुफा के सामने वाली दीवार पर है,ं जहाँ द्वार के ऊपर दो दृष्य अंकित हंै। पहला दृष्य नायिका के वियोग से संबंिधत प्रतीत होता है। एक स्त्री शोकाकुल है तथा दाहिने हाथ से पल्ले से अपना मँुह छिपा कर शायद वेदना व्यक्त कर रही है। इस स्त्री का बांया हाथ कुछ कहने की मुद्रा मंे फैला हुआ है। एक अन्य स्त्री सहानुभूतिवष उदासभाव से देखती हुई इसे सान्त्वना दे रही है। कुछ स्त्रियाँ झरोखे के पास बैठी हैं। छत के ऊपर एक कपोत युगल बैठा है, जो प्रणय प्रसंग का प्रतीकात्मक चित्रण है। 

दूसरा दृष्य

इस चित्र में चार भद्रपुरूष पालथी लगाये पीली गोल गद्दियों पर बैठे हुए का है, जो कोई मन्त्रणा करते प्रतीत होते हंै। चारों पुरूष राजसी वेषभूषा में हैं, ये सभी गले तथा हाथों मे आभूषण धारित हैं। बांयी आरे के दो व्यक्तियों के सिर पर मुकुट भी है। दोनों मंे पहला कोई मंत्री और दूसरा राजपुरूष प्रतीत होता है। हस्तमदु्राआंे और नेत्रों मंे भावाभिव्यक्ति का अच्छा तालमेल है। पृष्ठभूमि में उद्यान का दृष्य है। सम्भवतः यह चित्रण किसी राजपुरूष द्वारा बाद्धै धर्म अंगिकार करने की घटना का हो। 

तीसरा दृष्य

इस दृष्य में आकाष में विचरण करते हुए छः व्यक्तियों का एक समूह का है। जिसमें एक प्रधान आकृति (धर्म प्रवर्तक मुद्रा मंे) के निकट कुछ व्यक्ति वार्तालाप कर रहे हैं। सभी आकृतियाॅं भिक्षुदषा में सिर मुंडे़ हुए हैं। 
चैथा दृष्य
तीसरे दृष्य के ठीक नीचे पाँच गायिकाओं के मध्य एक सुन्दरी वीणा वादन की मुद्रा मंे खड़ी है, गायिकाआंे के चित्रों मंे केवल कमर तक का भाग ही शेष रहा है। अजन्ता की ही तरह सभी स्त्री आकृतियों ने कमर तक कसी चोली पहन रखी है, व इनके बाल जूडे़ में बंधे हंै। चित्र में अजन्ता की ही तरह ईरानी नीला रंग (लेपिस लाजलुी) भरा गया है। 

पाँचवा दृष्य

यह दृष्य बडा़ ही रोचक है। इसमें दो समूह मंे नृत्यांगनाएँ और वाद्य-वादिकाएँ चित्रित हैं। प्रथम समूह मंे छः तथा दूसरे समूह में सात नृत्यांगनाएँ एक पुरूष के चारांे ओर नृत्यमग्न हंै। दृष्य मंे पुरूष को आकर्षक वेषभूषा में और नृत्यरत मुद्रा मंे चित्रित किया गया है। चित्रकार ने सम्पूर्ण संयोजन केन्द्राभिमुख संयोजित किया है, साथ ही प्रभाविता के सिद्धान्त को भी महत्व दिया है। दूसरे समूह मंे नृत्यमुद्रा में खड़ी पुरूषाकृति को घेरे सात नृत्यांगनाएँ मण्डलाकार रूप में खड़ी हैं। नर्तक चुस्त कुर्ता और तंग पायजामा पहने है, तथा उसके बाल कंधों पर लहरा रहे हैं। गायिकाआंे के पास छोटे-छोटेे मंजिरे, मृदंग और कुछ के पास बजाने वाले छोटे डण्डंे हैं। दोनों समूह की वेष-भूषा एक जैसी ही हैं। यहाँ भी वर्तुलाकार संयोजन में मुख्य आकृति प्रभाविता लिए हएु चित्रित की गयी है। 

 
                                           चित्र 23 - बाघ गुफा संख्या 4 का पांचवां दृश्य: नृत्य दल।

छठा दृष्य 

इस दृष्य में उद्यान की दीवार के दूसरी ओर एक सत्रह घुड़सवारों के दृष्य का अंकन है, जो किसी राजपरिवार का जुलूस प्रतीत होता है। जुलूस में एक सी गति, राजप्रतीक चिन्ह और सभी की एक सी पोषाकंे राजपरिवार को प्रकट करती है। अष्वों की उन्नत ग्रीवा, स्वाभाविक गति एवं अष्वारोहियों की मुखमुद्राएंँ विजयोल्लास को प्रकट करती हुई है। जो विजय के या कार्य समाप्ति के बाद पुनः अपने आलय को लौट रही है। 

सातवाँ दृष्य

इस दृष्य में हाथियों का एक जुलूस है, जिसमें छः हाथी और तीन घुडसवार हैं। हाथियों पर राजपरिवार के व्यक्ति बैठे हैं, घोडों पर सिपाहियांे को दर्षाया है। चित्रकारांे ने हाथियांे की गति के अंकन में अच्छा रेखीय कौषल दिखाया है। इनके पीछे की ओर स्त्रियों के दो समूह हैं, जिनको बडी़ ही आकर्षक मुद्रा मंे चित्रित किया गया है, दोनों दृष्यों (स्त्री समूहांे के बीच) के बीच मे एक दीवार चित्रित है। पास मे कुछ वनस्पति, नदी और झोपड़ी व गांव सा दृष्य अंकित है।

आठवाँ दृष्य

सातवे दृष्य के बाद एक द्वार है। जिसके दूसरी ओर अन्य दृष्य है, जो अब पूर्णतः नष्ट हो चुका है। परन्तु डाॅ. इम्पे ने जब यह गुफा देखी थी, तब यह दृष्य पूर्ण सुरक्षित था। उनके कथनानुसार यह दृष्य बडा विषिष्ठ व रोचक है। इसकी आकृतियाँ ठीक विपरित दिषा मंे देख रही है। इनमें चार हाथी और तीन घोडें हैं, जो विश्राम की स्थिति में हैं। इन पर बैठे महावत भुजाएँ बांधें हाथियों के मस्तक पर आराम कर रहे हैं। एक हाथी की सूंड मंे कपडा बंधा है। निकट ही दो पुरूष आकृितयाँ पैदल चल रही हंै, जिनके हाथ मंे तलवार व भाला है। निकट ही शाल वृक्ष के नीचे कुछ जल पात्र, डाल पर नीला कपड़ा व नीचे धर्मचक्र चिन्हित है। इसके साथ ही एक केले के वृक्ष के नीचे पालथी लगाये बुद्ध या कोई स्थावर अपने षिष्य को उपदेष दे रहे है। इसके अतिरिक्त और भी कुछ आकृतियाँ यहाँ चित्रित हैं, किन्तु सभी अस्पष्ट और धूमिल हो चुकी हंै। इस गुफा के खम्भो की पिछली पंिक्त पर अनेक सुन्दर आलेखन हैं, जिनका अब कुछ-कुछ धूमिल रूप ही दिखाई देता हैं।

गुफा संख्या 5

इस गुफा मे अनके चित्र रहे हंै, जिनमें बुद्ध का सुन्दर चित्र के अवषेष मात्र रह गये हैं। इस विहार गुफा के अन्दर की पाँचांे कोठरियाँ सुसज्जित थी, जहाँ अब कुछ भी शेष नहीं है। इन चित्रों की आकृतियाॅं, भाव-भंगिमाएँ और अलंकरण अजन्ता के समान ही हैं।
बाघ की गुफाओं की छतांे का सारा प्लास्तर गिर चुका है, परन्तु यह निष्चय है कि यहाँ भी सुन्दर आलेखन रहे होंगे। कार्ल खण्डालावाला ने इन अभिलेखांे मंे से ‘‘मुर्गी आरै उनके चूजों’’ का एक चित्र प्रकाषित भी किया है।
 
बाघ के चित्रों का चित्रण-विधान

बाघ गुफा की चट्टानंे अजन्ता की तरह कठारे पत्थर की न होकर बालू के पत्थर की हैं, जिसका बालू खिरता रहता है। इन्हीं भित्तियों पर चूने का प्लास्तर चढा कर टेम्परा रंगों से कलाकारांे ने यहाँ चित्रण किया गया है। यहाँ का चित्रण विधान अजन्ता से मेल रखता है। बाघ के चित्रों के रंग भी उसी क्षेत्र से प्राप्त किये गये थे, जिन्हें कूट-पीसकर स्थानीय गोंद मंे मिलाकर काम मे लिये गये हैैं किन्तु अजन्ता वाली आकारांे की काले रंग की अन्तिम खुलाई (बाह्य रेखा) का यहाँ अभाव है। शायद इन कलाकारों ने यह कार्य बीच में ही छोड़ दिया होगा या फिर समय लेकर काला रंग चूने के तेज से नष्ट हो गया होगा।

अजन्ता की तरह यहाँ पर भी पहले आकृतियांे का रेखांकन किया गया, फिर स्थानीय रंगों को समतल रूप मंे भर कर गोलाई व उभार देने के लिए आस-पास गहरे रंगों का प्रयोग किया गया है। बाघ के इन गुफा चित्रों मंे हिरौन्जी, सफेद और काले रंगांे से सुन्दर आलेखन बने हैं तथा हरे, पीले, लाल व नीले विरोधी रंगों का भी खूब प्रयोग हुआ है। इस प्रकार बाघ के चित्रों में रंगों की दो शैलियाँ दिखाई देती हंै, जो सम्भवतः चित्रण के अलग-अलग कालखण्ड़ों को दर्षाती हैं। 

बाघ की विषेषताएँ

जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण

बाघ की गुफाआंे मंे केवल बौद्ध धर्म का ही चित्रण नहीं हुआ अपितु अष्वारोहण, गजारोहण, नृत्य-गान, जुलूस, राजपुरूष, स्त्रियों की विभिन्न अवस्थाएँ: प्रेम-विरह का भी सुन्दर चित्रण यहाँ हुआ है। जीवन की उल्लास और आनंद की अभिव्यक्ति बाघ में अंजता से सुन्दर है। आकारों के अंग-प्रत्यंगों का अनुपात, मुद्रा-स्थितियाँ व संयोजन सभी परिपक्व कलाषैली का परिचय देते हंै। 

प्रकृित एवं पशु-पक्षी चित्रण

बाघ के चित्रों मंे प्रकृति का अंकन बड़ा ही सन्ुदर हुआ है। मोर-चकोर, कोकिल-कपोत व सुक-सरिका सदा ही भारतीय सृजन में प्रेरणा-पे्ररक व सहयोगी रहे हंै, जिनका चित्रण यहाँं भी खूब हुआ है। आलेखनों मंे फूल-पत्ति, पषु-पक्षी सभी कुछ आकर्षक ढंग से यहाँॅ संयोजित किए हैं। पुष्पगुच्छों, लताओं कमल-कमलदलों का सुन्दर चित्रण बाघ में हुआ है। लताबन्धों के बीच-बीच में पक्षियों के विविध रूप अत्यन्त ही रोचक ढंग से बाघ के चित्रकारों ने चित्रित किए हैं। साथ ही बाघ के चित्रकारांे ने हाथियों आरै अष्वों के चित्रण मंे भी रोचकता दिखाई है। 

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