गोपाल घोष {Gopal Ghose}

File:Ram Gopal Ghosh.jpg - Wikimedia Commons
गोपाल घोष का जन्म 1913 में हुआ गोपाल घोष कोलकाता ग्रुप के वोहमिनियन रोमांटिक कलाकार माने जाते हैं गोपाल घोष दृश्य चित्रकार के साथ-साथ मूर्तिकार भी थे गोपाल घोष को आधुनिक भारतीय प्रकृति दृश्य चित्रण (लैंडस्केप) का जन्मदाता माना जाता है गोपाल घोष कलकत्ता ग्रुप के दूसरे सुप्रसिद्ध कलाकार है। गोपाल घोष एक नये प्रयोगी हैं जिन पर सामयिक कला प्रवत्र्तियों और अनेक कलागुरुओं की क्रियाशील प्रेरणा एवं अनुभूति की छाप है। सर्वप्रथम इन्होंने जयपुर में शैलेन्द्रनाथ दे के तत्त्वावधान में कार्य किया, तत्पश्चात् शांतिनिकेतन में अवनीन्द्रनाथ ठाकुर और नंदलाल वसु से ये अत्यधिक प्रभावित हुए। वहाँ से निकल कर देवी प्रसाद राय चैधरी के शिष्यत्व में मद्रास स्कूल आफ आर्ट में दाखिल हो गए और परीक्षा में विशेषता हासिल की। बहुत दिनों तक इतस्ततः भ्रमण कर तथा अनेक अनुभवों को बटोर ये कलकत्ता जा बसे और अपनी प्रगति व सीमाओं के अनुरूप जागरूक रहकर उसके द्वारा विकसित आत्मविश्वास के साथ सौंदर्य और कला की समृद्धि में प्रवृत्त हुए।
यद्यपि ये किसी खास कला परम्परा या रीति-नीति से परिचालित नहीं हुए, तथापि इनकी कला में एक विशिष्ट गौरवमयी क्रियाशीलता विद्यमान है। अभिनव कलाधारा के प्रति जहाँ बहुत सी विपरीत धारणाएँ प्रस्तुत की जाती रहीं वहाँ इस विरोध और वैषम्य के बावजूद सार्थक पक्ष के सर्वागीण तत्त्वों की सहजता को ग्राह्य करना इनका लक्ष्य रहा है।
गोपाल घोष ब्रुष-ड्राइंग में सिद्धहस्त है, पर रेखांकन कमाल का होता है। समुचित और आनुपातिक रेखाएं जिनकी गत्यात्मक लय, सहज सौष्ठव और विलक्षण सजीवता से प्रतीत होता है मानो वे विश्रृंखलता में व्यवस्था उत्पन्न कर निर्द्वन्द्व निर्बध लहरियों-सी मुक्त हैं। आनन्द या विषाद,हल्की भावभंगी अथवा गहरो अनुभूति, स्फूर्त चैतन्य या अप्रतिम तदाकार चिन्तना सभी इनकी रेखाओं के विषय हैं। उत्फुल्लता में उनकी रेखाएँ थिरक उठती हैं और शोक में कसमसा कर सिहरती सी प्रतीत होती हैं। प्राकृतिक दृश्यों या नेनरंजक नजारों का चित्रण करते हुए इनकी रेखाओं में वैसा ही वातावरण उत्पन्न करने की गत्यात्मकता है। उनसे कुछ ऐसा बन जाता है जिसमें शास्त्रीय मर्यादा का उनना परिपालन भले ही न हो, परन्तु हर संवेदना एवं हर भावभंगी के साथ तादात्म्य स्थापित करने वाली ऐसी स्वाभाविक लय और रागास्मकता है जिन्हें देश काल की परिस्थितियों से ग्रहण करके तथा स्वानभूति और स्वविवेक से आत्मसात् करके मूर्त किया गया है। यही कारण है कि गोपाल घोष ने न सिर्फ देवालयों और विभिन्न दृश्यों के चाँदनी रात पेंसिल स्केच आँके हैं. अपितू जानवरों और पक्षियों की छोटी-छोटी बारीकियों, मानव-मस्तिष्क की विचित्र खामखालियों और मूड, यहाँ तक कि प्रकृति के समय-समय व्यक्त रूप-चिन उनकी ब्रश-ड्राइंग से उभरे हैं।
इनकी ड्राइंग की सबसे बड़ी खूबी है-सहज प्राकृतिक निरूपण की प्रासंगिकता । रेखाओं के संकुचन, स्थान की विशदता और ब्रश के कौशलपूर्ण कौतुक को देख कर हमें चीन-जापान की क्लासिकल पद्धति का बरबस स्मरण हो पाता है, साथ ही आधुनिक गाजिअर-ब्रजस्का जैसा रेखांकन-चापल्य दृष्टिगत होता है । सहज लाइनों के ढाँचे के सहारे इन्होंने रंग भरना नही सीखा, बल्कि दृश्यवस्तु में बैठकर सीधे रंगों को ग्रहण किया। लगता है इनकी आड़ी-तिरछी रेखाएँ जैसे बोलती हैं । प्राकृतियाँ या दृश्य जो इन रेखाओं में बड़े सहज ढंग से उभर आते हैं वे मानो कलाकार के प्राणरस से एकतान हो उसके अंतरंग भाव को नितान्त जीवंत एवं सुष्ठु रूप में मुखरित करते है। रेखाओं में इन्होंने पशु-पक्षियों को कल्पित संसार की औपचारिक प्रक्रिया से नहीं वरन हृदय की सहजता से आँका है। इनकी रेखाओं में जो सादगी और ऋजुता है वे वस्तु के संदर्भ में एक विशेष अर्थ रखती है । लोकजीवन में रमकर इन्होंने नैकट्य का जो अनुभव किया इससे रेखाओं की यथार्थता मन को छूती है, दूसरे शब्दों में उनकी अर्थवत्ता कलाकार के जीवन-दर्शन की प्रतीक है, उसके अंतर्वैयक्तिक स्वरों का इतिहास उनमे समाया है। उदाहरणार्थ-जिस चित्र में पछोरने वाली औरतों का दृश्यचित्र हैं उसमें सफेद रंग की गत्यात्मक त्वरा, काले और भूरे रंगों का का सजीव संस्पर्श तथा सूखी पीली घास के ढेर को छते सघन सपाट रंग के झपाटे इनके रंग परिज्ञान के द्योतक हैं। जानवरों की भंगिमाएँ बड़ी ही अजीब जिन्दादिली और सच्ची सक्रियता से आँकी गई हैं । वर्षा पूर्व कलागुरु अवनीन्द्र नाथ ठाकुर ने जो इनको पाशीर्वाद दिया था वह वस्तुतः सच्चा साबित हो रहा है । बहुत बचपन में ही गोपाल घोष के कला-प्रेम और उनकी प्रतिभा देखकर मैंने उन्हें भारत के प्रमख स्थानों में घूम पाने और विविध दृश्यों एवं मंदिरों के पेंसिल स्केच बनाने का आदेश दिया था। मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता है कि भ्रमण के पश्चात इन्होंने बहुत से स्केच बनाये हैं । ड्राइंग की उनमें असाधारण प्रतिभा है और यदि वे किसी पाश्चात्य देश में पैदा होते तो उन्हें कला-जगत् में अपूर्व मान्यता मिलती। मेरी हार्दिक सदिच्छा उनके साथ है।
गोपाल घोष की मृत्यु 1980 में हुई
चित्र :-1.  चांदनी रात (स्टारी नाइट) ,   2 . डॉन

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