छापा कला (Graphic Art)

 
जिस प्रकार कलाकार अपने भावांे की अभिव्यक्ति हेतु चित्र या मूर्ति का सृजन करता है उसी प्रकार छापा चित्रण भी कलाकार के भावाभिव्यक्ति का माध्यम बन गई है। छापा पद्धति की विभिन्न तकनीक के साथ कलाकार ने अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति को छापाचित्रण से प्रकट किया है।
1450 ई. मंे गुटनबर्ग के छापा मषीन के आविष्कार से प्रिटिंग तकनीक का दु्रत गति से विकास हुआ था। 14वीं शती मंे यूरोप के कलाकार डयूरर ने छापाचित्रण को कलाकृति के रूप में प्रयोग किया था। बीसवीं शती तक आते-आते कलाकारों ने छापाचित्रण को स्वतंत्र माध्यम के रूप में अपना लिया। विभिन्न तकनीक के विकास से छापाचित्रण ने कई संभावनाआंे को बढाया। पूर्व में मिश्र, भारत और अरब देषों मंे छापाचित्रण केवल टैक्सटाईल या मुहर चित्रण हेतु ही व्यावसायिक रूप में प्रयोग होता था। अब ये व्यावसायिक छापा न होकर कलासृजन का माध्यम हो गया। छापाचित्रण की कई विधियां हंै।

रिलीफ प्रिटिंग

रिलीफ प्रिटिंग सबसे पुरानी तकनीक है। इसमंे जिस क्षेत्र को छापा के लिये नहीं चाहिये उसे टूल्स की सहायता से सतह को काट दिया जाता है। उभरे हुये भाग पर रोलर से स्याही लगा कर उस ब्लाॅक या प्लेट का प्रिटिंग मषीन से दबाव देकर छाप ले लिया जाता है। इसके प्रचलित तकनीकों मंे लिनोकट, वुडकट आदि हैं। लीनोकट हेतु सादा लिनोनियम शीट का प्रयोग होता है जो लचीलापन लिये होती है। वुडकट के लिये अधिकतर प्लंैकवुड का धरातल के रूप में प्रयोग होता है। लिनोक ट व वुडकट की धरातल पर काम करने के लिये विभिन्न आकार के टूल्स की सहायता से धरातल को उत्कीर्ण कर लिया जाता है।

 
                                                                 चित्र 1 - हरिन दास, वुडकट

इन्टैग्लियो

इन्टैग्लियो शब्द इतालवी भाषा का है जिसका अर्थ है एन्ग्रेव करना या काटना। इसमें धातु की प्लेट (जिंक) पर रेखाएं या टोन्स को उत्कीर्ण किया जाता है। धातु की प्लेट में विभिन्न स्तर बनाने के लिए अम्ल (एसिड) का प्रयोग किया जाता है। प्लेट में स्याही लगाकर उसे साफ कर दिया जाता है। स्याही प्लेट के कटे हुये स्थान पर भर दी जाती है। धातु की प्लेट पर स्याही लगाने के बाद पेपर व कपड़े से अतिरिक्त स्याही को (वाईप) साफ करते है। नम कागज को प्लेट पर रखकर ऐचिंग प्रेस के रोलर्स से दाब देकर छापा निकाल लिया जाता है। रोलर के दाब से कागज कटे हुये भाग पर जोर लगता है जिसमें से स्याही कागज ले लेता है और प्लेट का कागज पर छापा आ जाता है।

 
                                                          चित्र 2 - अवनिन्द्रनाथ टैगोर, लिथोग्राफ

इसमें कई तकनीकों से काम कर सकते हैं कुछ निम्न हैं:-
(1) मैजोटिंट
(2) ड्राई पाइंट
(3) एचिंग
(4) एक्वाटिंट।

इन विधियों के अतिरिक्त लिथोग्राफी सिल्क स्क्रीन, कोलाग्राफ आदि हंै। इन विधियांे को मिश्रित करके भी कला सृजन कर सकते हंै।
स्क्रीन प्रिंटिग (छपाई)
स्क्रीन छपाई अधिकतर व्यावसायिक कार्यों हेतु प्रयोजन मंे ली जाती रही है किन्तु 21वीं शताब्दी मंे स्क्रीन छपाई भी कला कार्योंको अभिव्यक्त करने का माध्यम बनी। इस माध्यम को प्रयोग कर कई कलाकारों ने कला की नवीनता को छुआ और यह माध्यम भी अन्य माध्यमों की भांति कला की अभिव्यक्ति के लिये सषक्त बन गया।
स्क्रीन में पहले ‘सिल्क’ का कपड़ा प्रयोग किया जाता था इसलिये इसे सिल्क स्क्रीन के नाम से भी जाना जाता है। सर्वप्रथम एक डिजाईन तैयार की जाती है। पुराने समय में इस डिजाइर्न की नकारात्मक (नेगेटिव) व सकारात्मक (पाॅजिटिव) फिल्म तैयार की जाती थी। जैसे कि ब्लैक एण्ड व्हाइर्ट छाया चित्र (फोटोग्राफी) मंे होता है। इसके पष्चात पोजिटिव डिजाइर्न को प्रकाष संवेदनषील (सन्ेसेटिव) लगी फिल्म वाली स्क्रीन को सूर्य की किरणांे या हैलोजन लाइर्ट से एक्सपोज करते है। इसके पष्चात सादे पानी से स्क्रीन को धोया जाता है। स्क्रीन धोने के पष्चात् भलीभांति सुखायी जाती है और पेपर टेप से डिजाइर्न की आच्छंदन (मास्किंग) की जाती है।
अब तैयार है स्क्रीन छपाई के लिये। सर्वप्रथम क्लेम्प की सहायता से कांच लगी टेबल पर स्क्रीन को कसते हंै। सपाट काँच व स्क्रीन के बीच जिस पेपर पर छपाई करनी होती है उसको रखा जाता है। अब स्क्रीन की सतह पर स्याही (रंग) स्क्यूजी की सहायता से हाथांे का जोर देते हुऐ फैलाते हैं। स्याही (रगं) डिजाईन के अनुरूप कागज पर लग जाती है आरे इस प्रकार एक ही डिजाईन से कई प्रिटं तैयार कर लिये जाते है। आजकल स्क्रीन छपाई कई प्रकार के व्यावसायिक कार्यो के लिये प्रयोग मंे लाई जाती ह।

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